◆ श्रीविद्या अंतर्गत सूक्ष्मभूत अवस्था का ज्ञान ◆
भाग : १
बहुत सारे श्रीविद्या साधको को ” सूक्ष्मभूत ” क्या होते हैं , यह प्रथम ही सुना होगा । श्रीविद्या साधना के अभ्यास में यह एक अभ्यासनिय विषय है।
श्रीविद्या साधना में अलग अलग तरह का ज्ञान लेना जरुरी है । कुछ श्रीविद्या साधक खुदको अद्वैत श्रीविद्या करने वाले कहते हैं , पर ऐसे लोगो को कुछ प्राथमिक सवाल पूछे तो भाग जाते हैं ।
श्रीविद्या में सिर्फ पंचदशी की दीक्षा लेकर जाप करना इतना ही नहीं है ।
पंचदशी के अक्षरो को अपने अंदर समाहित करने अथवा उतारने के लिए गुरु के साथ रहकर एक एक विषय को समझना पड़ता है । इसके लिए सही साधना भी आवश्यक है ।
हमे पँचमहाभूतो तक पता है । पर उनकी पोटेंसी कम कम होने पर , किस किस डायमेंशन में कोनसे तत्व रहते है , इसके विषय मे ज्यादा मालूमात नही होती ।
जैसे स्थूल जगत में विस्तीर्ण अलग अलग प्राणी से लेकर पर्वत , पत्थर है । और उनमें महाभूतों की पोटेंसी अलग अलग है , वेसे सूक्ष्म जगत में भी कई सारे लोक लोकांतर है , उनमें भी वेसा ही है ।
यह एक बड़ा अभ्यास है । ध्यानिय अवस्था मे बाह्य साधना को मोड़ के सूक्ष्म जगत में जाने की कला श्रीविद्या में अवगत होनी चाहिए ।
श्रीविद्या साधना में स्थूल भूतों से प्रकृति तक का साक्षात्कार धीरे धीरे होता है।
स्थूल भूतों को अनुभव करने के लिए साधक को अपनी साधना के दौरान बड़े विवंचना परिश्रम अपमान से भी गुजरना पड़ सकता है ।
स्थूल भूतों को समझने के लिए स्थूल प्रकृति को समझना चाहिए । पशू पक्षी पेड़ और मनुष्य की रचना ओर उनका ढांचा ।
साधक को अत्यंत सात्विक वृत्तियां अपनानी पड़ती है । इसमे बहुत सारे दर्शन भी हो जाते हैं । पर ये दर्शन कॉन्शियस लेवल पर होते हैं । काल्पनिक रूप में नही ।
साधक के पास ये सब आकर्षित होने के लिए , साधक को भी उतना पवित्र होना चाहिए ।
धीरे धीरे साधक स्थूल भूतों से सूक्ष्म भूत की ओर निकलता है । इसमे साधक के शरीर की तरंगें ही काम करती है । ध्यान अवस्था अथवा साधना में साधक को प्रकृति की विकृतियो को देखकर विवेकता अपनानी होती हैं । सूक्ष्म भूतों का अवतरण पँच तन्मात्रा से होता है ।
श्रीविद्या में इसपर एक विषय है । पंचदशी के पहले पाच बीजाक्षर पँच तन्मात्रा के प्रतीक है । सूक्ष्म भूतों से ये तन्मात्राए अधिक सूक्ष्म होती है ।
पंचभूत भारतीय विचारधारा में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच मूल तत्व माने गए हैं जिनसे सारी भौतिक सृष्टि उत्पन्न हुई है।
इन्हीं को भूत भी कहते हैं।
भूतों के स्थूल और सूक्ष्म ये दो भेद माने गए हैं।
वैशेषिक दर्शन में पहले चार भूतों को अणुरूप माना गया है- अणुओं के संचय से स्थूल भूत उत्पन्न होते हैं। आकाश एक और अविभाज्य कहा गया है।
सूक्ष्म भूतों के कारण ही सूक्ष्म जगत का निर्माण होता है। इसमे भूमि नही होती । भूमि से लेकर ब्रम्ह लोक तक जितने भी लोक है वह सब सूक्ष्म भूतों के कारण है ।
पर पंच तन्मात्रा के कारण इनकी सूक्ष्मता कम ज्यादा रहती है , किसीमे कोई भूत कम ज्यादा भी रह सकता है।
पंचतन्मात्र अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध तन्मात्र; ये अलग अलग सूक्ष्मभूत हैं । इन्हीं पच- तन्मात्र से पंचमहाभूतों की उत्पत्ति हुई है ।
धन्यवाद ।
क्रमशः……
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